शामली, नवम्बर 28 -- शहर के जैन धर्मशाला में शुक्रवार को आयोजित सभा में श्री नयन सागर मुनिराज ने धर्म, साधना और आत्मिक आनंद पर सारगर्भित प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि यह संसार और इसमें होने वाली सभी क्रियाएं अस्थायी हैं। यदि क्रिया से प्राप्त होने वाला आनंद किसी बाधा से समाप्त हो जाए, तो वह आनंद और वह क्रिया सच्ची धर्म साधना नहीं कही जा सकती। उन्होने कहा कि धर्म को समझने की दृष्टि सबकी अलग-अलग होती है, जैसे एक ही ग्रंथ को हजार लोग अलग तरीके से पढ़ते और समझते हैं। लेकिन धर्म वह नहीं है जो हम अपनी सोच के अनुसार गढ़ लें, बल्कि धर्म वह है जो आत्मा को स्थिरता और शाश्वत आनंद प्रदान करे। उन्होंने कहा कि सच्चा आनंद परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि आत्मा की स्थिरता पर टिका होता है। भगवान पार्श्वनाथ ने कठिन विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी ध्यान-स...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.