भागलपुर, मई 8 -- नाथनगर, हिंदुस्तान प्रतिनिधि। हमें अगर अपनी संस्कृति बचानी है तो हमें अपने बच्चों में संस्कार लाना होगा, आने वाली पीढ़ी ही हमारे आने वाले भारत का गौरव है। राम जैसा आचरण चाहते हैं तो स्वयं पहले दशरथ बनें। सीता जैसी पुत्री चाहिए तो आपको भी जनक जी की तरह बनना होगा। पिता को लोग कहते हैं तो पुरूष काफी कठोर होता है, लेकिन पुरूष कभी कठोर नहीं होता है। वे धैर्यवान होते हैं। उनका हृदय कोमल होता है। माताएं अपना कष्ट लोगों के बीच-बीच चार माताएं इकट्ठा होकर बांट लेती हैं, लेकिन एक पुरुष कष्ट होने पर अकेले में रोता है, क्योंकि वे सोचते हैं कि यदि सामने रोएंगे तो घर के सभी सदस्य कमजोर महसूस करेंगे। यह बातें यह प्रसंग बुधवार को प्रयागराज से पधारीं कथा वाचिका देवी मीरा किशोरी ने कही। चंपानगर के तुलसी मिश्रा लेन स्थिति हनुमान मंदिर में नौ...
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