शामली, अक्टूबर 4 -- शहर के जैन धर्मशाला में श्री 108 विव्रत सागर मुनिराज ने प्रवचन का मुख्य विषय कर्मफल, धर्म मार्ग पर क्रमबद्ध प्रगति का महत्व और केवल आत्म-ध्यान पर अत्यधिक जोर देकर प्रारंभिक धार्मिक क्रियाओं की उपेक्षा करने वालों की आलोचना रहा। मुनिराज ने कहा कि संसार की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि कर्मों का फल तत्काल नहीं मिलता। लोग जब पापियों को सुखी और धार्मिकों को दुखी देखते हैं तो धर्म से विचलित हो जाते हैं। उन्होंने पाप की तुलना धीरे-धीरे घिरते बादलों से की, जो अंततः फटकर दुख की बाढ़ लाते हैं। इसी प्रकार पुण्य का फल भी समय पर ही मिलता है। उन्होंने समझाया कि पुण्य और पाप दोनों के फल बासी भोजन की तरह हैं, जो अतीत के कर्मों से उत्पन्न होते हैं और क्षणिक सुख-दुख देते हैं, जबकि धर्म का ताजा सुख गुरु वाणी सुनने से तुरंत आत्मा को शांति और आ...