बेगुसराय, जनवरी 31 -- नावकोठी, निज संवाददाता। संत समागम में संतों की वाणी ही त्रिवेणी है जिसके सान्निध्य में बैठकर संत महात्मा ज्ञान रूपी संगम में गोता लगा कर आवागमन के झ़ंझट से मुक्त हो जाता है। स़ंत का चरणरज ही चंदन है। ये बातें संत निरंकारी भवन रजाकपुर में संत समागम में केन्द्रीय ज्ञान प्रचारक रामललक शुक्ला ने शुक्रवार को कहीं। उन्होंने कहा कि संतों के चरणों के स्पर्श के बाद मस्तक से लगाने के उपरांत मस्तिष्क को शीतलता मिलती है। चंदन से भी शीतल चंद्रमा की आभा होती है। इससे भी ज्यादा शीतल संत-महात्माओं की संगत है। इसमें आकर परमपिता परमात्मा का बोध होता है। साकार सदगुरु का ध्यान करने, पूजा अर्चना करने से, सदगुरु के मुखारविंद से निकली वाणी ही मंत्र है। समय के सदगुरु समय समय पर आकर अपनी वाणी, कर्म से मानव के शरीर के अंदर निवास करने वाली आत्...
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