लखनऊ, अगस्त 12 -- लखनऊ, विशेष संवाददाता विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने मंगलवार को निजीकरण की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। संघर्ष समिति ने कहा कि सरकार को साफ करना चाहिए कि निजीकरण के बाद कितने साल तक और कितनी रकम औद्योगिक समूहों को आर्थिक सहायता के तौर पर दी जाएंगी। जिन शर्तों पर निजीकरण किया जा रहा है अगर वही बिजली निगमों पर लागू हो जाएं तो उनका कायाकल्प हो जाए। संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से एक बार फिर निजीकरण की प्रक्रिया संभावित घोटाले की वजह से निरस्त करने की मांग की है। संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि केंद्र सरकार के सितंबर 2020 में जारी ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट में लिखा है कि निजीकरण के बाद सरकार औद्योगिक समूहों को तब तक रियायती बिजली देगी जब तक निजी कंपनी मुनाफे में नहीं आ जाती। यू...