वाराणसी, अक्टूबर 29 -- वाराणसी, मुख्य संवाददाता। नौ रसों में हास्य रस की सदा उपेक्षा की गई है, जबकि यह संघर्ष भरे जीवन की संजीवनी है। अन्नपूर्णानंद ने हास्य रस की सूखती धारा को अपनी रोचक एवं हास्य पूर्ण कहानियों से सरस बनाया। भारतेंदु के बाद हास्य-व्यंग की धारा जीवंत करने का श्रेय अन्नपूर्णानंद को ही जाता है। ये बातें वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. श्रद्धानंद ने कहीं। वह बुधवार को अर्दलीबाजार स्थित राजकीय पुस्तकालय के सभागार में साहित्यिक संघ एवं विद्याश्री न्यास की ओर से आयोजित चर्चा शृंखला में मुख्य वक्ता थे। 'हिंदी धरोहर: काशी की सृजन परंपरा' के सातवें चरण में आयोजित यह चर्चा काशी की हास्य-व्यंग्य परंपरा में कृष्णदेव प्रसाद गौड़ 'बेढब बनारसी' तथा अन्नपूर्णानंद के व्यापक अवदान पर केंद्रित रही। प्रो.श्रद्धानंद ने कहा कि अन्नपूर्णानंद ने शिष्ट ह...