मोतिहारी, मार्च 9 -- मोतिहारी, हि.प्र.। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में विभिन्न शोधार्थियों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। संगोष्ठी का संचालन डॉ. बबलू पाल (सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग) ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. जुगल किशोर दिधीच (अध्यक्ष, गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग) ने दिया। कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव का अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत साहित्य और लोकमंगल की अवधारणा को आधुनिक संदर्भों में स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि वेदों, उपनिषदों और गीता में वर्णित जीवन के सिद्धांत आज भी हमारे समाज के लिए मार्गदर्शक हैं। उन्होंने कहा कि भगवद्गीता के अष्टाध्यायी सिद्धांतों में जीवन के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, जो व्यक्तिगत आत्म-विकास के साथ-साथ सामाजिक उत्थान पर भी बल देते हैं। उन्होंने विशेष रूप से कर्मयोग और निष्काम कर्म की अवधारणा को समझाते...