रांची, दिसम्बर 27 -- शुभम किशोर रांची। झारखंड की मिट्टी ने हमेशा संघर्ष से तपे, लेकिन सपनों से चमकते खिलाड़ी दिए हैं। यहां संसाधनों की कमी है, सुविधाओं का अभाव है, फिर भी हौसलों की कोई कमी नहीं। रांची की मेकॉन कॉलोनी से निकलकर विश्व क्रिकेट का शिखर छूने वाले महेंद्र सिंह धौनी हों या बांस की स्टिक से ओलंपिक तक पहुंचने वाली निक्की प्रधान, हर कहानी साधारण जीवन से असाधारण मुकाम तक की यात्रा है। सलीमा टेटे का नंगे पांव से टीम इंडिया की कप्तानी तक पहुंचना, दीपिका कुमारी का गरीबी से विश्व नंबर-1 तीरंदाज बनना, अष्टम उरांव, आशा किरण बारला, अमीषा केरकेट्टा, चंचला और दिव्यांग खिलाड़ी जीतू राम बेदिया समेत कई खिलाड़ियों का संघर्ष झारखंड की असली पहचान हैं। इन खिलाड़ियों के जीवन में सिर्फ पदक नहीं, बल्कि मां की मेहनत, पिता की मजदूरी, सिस्टम की अनदेखी और...