शामली, जुलाई 21 -- शहर के जैन धर्मशाला में श्री 108 विव्रत सागर मुनिराज ने रविवार को प्रवचन करते हुए कहा कि जैसे शरीर को जीवित रखने के लिए साँस आवश्यक होती है, वैसे ही शिष्य के जीवन को सार्थक और उन्नत बनाने के लिए गुरु-भक्ति अत्यंत आवश्यक है। मुनिराज ने अपने पूज्य गुरुदेव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं कहा कि जिन्होंने उन्हें न केवल जीवन का मूल्य समझाया, बल्कि उसे कैसे जीना है, यह भी सिखाया। मानव जीवन को अत्यंत दुर्लभ बताया गया है। इसके बाद जैन कुल में जन्म लेना और उससे भी बढ़कर सच्चे सद्गुरु की प्राप्तिकृये सभी दुर्लभ सौभाग्य की श्रेणी में आते हैं। फिर भी, अधिकांश लोग इन अवसरों का वास्तविक महत्व नहीं समझ पाते और उनका सदुपयोग करने से चूक जाते हैं। भरत चक्रवर्ती का उदाहरण इस संदर्भ में प्रेरणादायक है। जब तक उनके बाल काले थे, वे संसारिक भो...