संतकबीरनगर, अगस्त 14 -- संतकबीरनगर, राहुल राय। 1947 में देश के बंटवारे के बाद जिले में आधा दर्जन से अधिक परिवार शरणार्थी बनकर आए थे। इन परिवारों ने जिले में अपनी गृहस्थी बेहतर ढंग से बसा ली। जो वरिष्ठ जन बंटवारे के बाद आए थे वे तो रहे नहीं लेकिन उनके आगे की पीढ़ी है, जिन्होंने बचपन में उस दर्द को झेला है। नई पीढ़ी वर्तमान समय में जनपद ही नहीं पूर्वांचल के बड़े चेहरों में भी शामिल हैं। लेकिन बंटवारे का दंश उनकी यादों में आज भी है। हर वर्ष 14 अगस्त आने के साथ ही उनकी स्मृतियां फिर से ताजा हो जाती हैं। उन्हें वह मंजर याद आ जाता है कि किस तरह से उनके पुरखों को अपना बसा-बसाया घर छोड़कर भागना पड़ा था। हालांकि आने के बाद से ही अपने संघर्षों के बदौलत जहां खुद को सभी ने स्थापित किया वहीं जिले के विकास में बड़ा योगदान दे रहे हैं। व्यवसाय, राजनीति, ...
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