शामली, अगस्त 5 -- शहर के जैन धर्मशाला में मुनि 108 विव्रत सागर ने सोमवार को जैन धर्मशाला में प्रवचन करते हुए कहा कि व्यक्ति स्वयं अपने सुख-दुःख, लाभ-हानि और अनुकूलता-प्रतिकूलता का कारण है। कोई देवी-देवता या फरिश्ता नहीं। जिन शासन पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है, जहां हर चीज़ अपनी ही कृपा से प्राप्त होती है, किसी और की कृपा से नहीं। उन्होने कहा कि स्वतंत्रता को गलत समझकर व्यक्ति अहंकारी हो जाता है। यह बात सही है कि व्यक्ति स्वयं के कर्मों का फल पाता है, लेकिन वह अक्सर दूसरों पर करुणा और दया दिखाता है, स्वयं पर नहीं। लोग दूसरों के लिए 24 घंटे काम करते हैं, पर स्वयं के ऊपर कृपा दृष्टि नहीं डालते। जैसे जलते हुए जंगल में बैठा व्यक्ति दूसरों के दुख पर ध्यान देता है, पर अपने आसन्न खतरे पर नहीं। दूसरों पर दया करना आसान है, जैसे भिखारी को रोटी देना...