शामली, सितम्बर 14 -- शामली। शहर के जैन धर्मशाला में शनिवार को आयोजित धर्मसभा में श्री 108 विव्रत सागर मुनिराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि लोकमत के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश को संसार का निर्माता, संचालक और संहारक माना जाता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि व्यक्ति स्वयं अपनी नीतियों से अपना संसार रचता, चलाता और नष्ट करता है। उन्होंने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि साम, दाम, दंड और भेद जैसी नीतियां वस्तुतः अनीति हैं। जिन पर अनादिकाल से चलते रहने के कारण मनुष्य अपराधी बना हुआ है। इसके परिणामस्वरूप वह जन्म-जन्मांतर के बंधनों में कारागार की भांति बंधा रहता है और एक योनि से दूसरी योनि में जाता रहता है। यह स्थिति भव्य जीवों के लिए अनंतकालीन सजा और अभव्य जीवों के लिए उम्रकैद जैसी है। मुनिराज ने कहा कि यदि भव्य जीव गाँव-देश की नीतियों को त्...