धनबाद, फरवरी 3 -- धनबाद, वरीय संवाददाता वेद विभाजन, 17 पुराणों के बाद भी वेद व्यास के मन को शांति नहीं मिली तो उन्होंने भागवत की रचना की। वेद कल्प वृक्ष के समान है तो उसी वृक्ष के फल का निचोड़ है भागवत। भागवत साक्षात भवगान का ही स्वरूप है। उक्त बातें अध्यात्मिक गुरु स्वामी गोविंद देव गिरि ने कहीं। वह रविवार को न्यू टाउन हॉल में आयोजित भागवत भक्ति कथा में प्रवचन कर रहे थे। पांच फरवरी तक चलने वाली इस कथा की शुरुआत स्वामी स्वामी गोविंद देव ने मधुराष्टकम से की। अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं...हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं के मधुरगान से पूरा टाउन हॉल गुंजायमान हुआ। कथा के दौरान उन्होंने कहा कि जब कृष्ण भूलोक का त्याग कर अपने धाम को प्रस्थान हुए तो उधव भी साथ जाने की जिद करने लगे। इस पर भगवान कहते हैं कि वह कहीं न...