बुलंदशहर, अक्टूबर 31 -- पहासू, संवाददाता। बहुसंस्कृति वाले देश में धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही बहरूपिया कला को जयपुर के शब्बीर खाँ जीवन्त बनाए हुए हैं। पिछले 15 वर्ष से पहासू में अपनी कला के रंग बिखेर कर लोगों का मनोरंजन करके उन्हें काफी सुकून मिलता है। कभी मेरा नाम जोकर का जोकर बनकर तो कभी जानी दुश्मन का भूत बन कर पात्र को जीवंत करके लोगों के बीच तालियां बटोरते हैं शब्बीर। मूल रूप से राजस्थान के जयपुर निवासी शब्बीर बताते हैं कि बहरूपिया कला उन्हें अपने दादा ऒर पिता से विरासत ने मिली। कई पीढ़ियों से राजा रजवाड़ों में उपस्थित रह कर बहरूपिया बन रोजी रोटी चलती थी,लेकिन अब इस कला के कदरदान अब कम हो गए हैं। कुछ लोग हैं, जो विभिन्न व्यवसायों से जुड़े होने के बावजूद इस कला को इतिहास बनने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इन लोगों का मानना है कि समा...
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