स्वामी अवधेशानंद गिरी, दिसम्बर 2 -- जब हम आत्मविश्वास और आशावादिता के साथ जीवन को ईश्वर की योजना मानकर स्वीकार करते हैं, तो जीवन एक साधन बन जाता है, बोझ नहीं। विपरीत परिस्थितियां आत्म-विकास के लिए अवसर बन जाती हैं। एक साधक का आत्मबल तब प्रकट होता है, जब वह संकटों को साधना और अवसर की भूमि बना लेता है। आध्यात्मिक पथ पर चलने वाला साधक जब जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझता है, तो यह स्वाभाविक है कि उसके भीतर संशय जन्म ले,- 'कहीं मैं मार्ग से तो नहीं भटक गया? कहीं मेरे प्रयास निष्फल तो नहीं हो रहे हैं?' परंतु यह सभी साधक के मन के भ्रम, भय, संशय मात्र हैं। वास्तव में ऐसी कठिनाइयां साधक के शरीर, मन और बुद्धि के परिष्कार के लिए आती हैं। जिस प्रकार अग्नि में तपकर सोना शुद्धता को प्राप्त होता है, वैसे ही विपरीत परिस्थितियों में ही साधक की चेतना...