बागपत, अक्टूबर 27 -- रेलवे स्टेशन, रेलवे ट्रेक, हाइवे या फिर जंगलों में मरने वाले अज्ञात लोगों के शवों को अपनों का कंधा नसीब नहीं हो पाता। पुलिस को भी उन्हें लावारिस, विक्षिप्त और भिखारी दर्शाकर उनकी मौत के राज को फाइलों में दफन करना पड़ता है। जांच अधिकारी पम्पलेट वितरित कर कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। इससे अज्ञात शवों की बरामदगी ने मानवीय संवेदनाओं और जांच तंत्र, दोनों पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। बागपत की बात करें, तो अक्तूबर 2024 से अक्तूबर 2025 तक 40 से अधिक शव मिले चुके हैं। जिनमें से करीब 12 शवों की पहचान हो चुकी है। रेलवे ट्रेक किनारे, नहर रजवाहों और जंगलों में मिलने वाले अज्ञात शवों की पहचान के लिए पुलिस और जीआरपी द्वारा सार्थक प्रयास नहीं किए जाते हैं। जांच अधिकारी पम्लेट वितरित कर समाचार पत्रों में अज्ञात शव की खबर छपवा कर कत...
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