रामगढ़, अगस्त 31 -- रामगढ़, निज प्रतिनिधि। श्रीदिगंबर जैन समाज के पूर्व अध्यक्ष मानिकचंद्र जैन ने दशलक्षण महापर्व के तहत रविवार को उत्तम शौच धर्म के बारें में बताया। उन्होंने कहा कि शौच का अर्थ पवित्रता उज्ज्वलता है। जो अपने आत्मा को देह से भिन्न ज्ञानोपयोग- दर्शनोपयोगमय, अखण्ड,अविनाशी,जन्म-जरा-मरण रहित, तीन लोकवर्ती समस्त पदार्थों का प्रकाशक सदाकाल अनुभव करता है, ध्याता है उसे शौच धर्म होता है। मन को मायाचार, लोभादि से रहित उज्ज्वल करने से शौचधर्म होता है। शुचि का अर्थ पवित्रता- उज्ज्वलता है। जिसका आहार-विहार आदि समस्त प्रवृत्ति हिंसा रहित हो, हिंसा के भय से यत्नाचार सहित हो, अन्य के धन में इक्षा रहित हो, अन्य की स्त्री में वाञ्छा कभी स्वप्न में भी नहीं हो, वहीं उज्ज्वल आचरण का धारक है, उसको ही जगत पूज्य माना जाता है।

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