सीवान, अक्टूबर 27 -- आशुतोष कुमार सीवान, । छठ गीतों की यह परंपरा सदियों पुरानी है, जो मां से बेटी और दादी से पोती तक पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही है। ये गीत न केवल श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक हैं, बल्कि लोक संस्कृति की जीवंत झलक भी पेश करते हैं। रुनकी झुनकी हो रुनकी झुनकी, छठी मइया सुन ल अरजिया हमार..., केतना दिनके बिदेश गइल भइया..., कांचा ही बांस के बहंगिया..., उठू हो सूर्य देव भइल बिहान...,उठू हो सूर्य देव भइल बिहान..., पटना के घाट पर हो, अरघ देब सूरज देव...,ओ छठी मइया तोहर महिमा अपरंपार...जैसे गीत आज भी हर घाट और घर में सुनाई दे रहे हैं। व्रती महिलाएं समूह में बैठकर पारंपरिक सुर और लय में गीत गाती हैं। जिनमें सूर्य देव की आराधना, छठ मइया की महिमा और परिवार की खुशहाली की कामनाएं निहित होती हैं। कहीं-कहीं गीतों के साथ ढोलक, मंजीरा और थाली...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.