अररिया, मार्च 20 -- अररिया। आखिर कहां फुर्र हो गई घर-आंगन व बगान में फुदकने व चहकने वाली नन्हीं परिंदा गौरेया। अब इसे देखने के लिए हमारी आंखें तरस सी गयी है। काफी ढूंढने पर भी वह कहीं दिखता। कभी पेड़ की टहनियों पर फुदकती तो कभी आंगन व दरबाजे से अनाज का दाने चुगती और फिर फुर्र हो जाती। यह नजारा अब सपने जैसा है। नई पीढ़ी को यह पता नहीं है कि गौरेया क्या है। ऐसा लगता है इंसान के बेहद करीब रहने वाली गौरैया यानी स्पैरो अब सदा के लिए गायब सही हो गई है। बिहार राज्य वन्य प्राणी पर्षद के पूर्व सदस्य व जानेमाने पर्यावरणविद सुदन सहाय कहते हैं कि स्कूल के सिलेबस में भी गौरैया संरक्षण से संबंधित विषयों की पढ़ाई होनी चाहिए। विश्व गौैरैया दिवस पर इस नन्हीं परिंदा के संरक्षण का हम सभी संकल्प लें। दूसरे को भी बचाने के लिए प्रेरित करें। पर्यावरणविद् श्री सहाय...