सुल्तानपुर, नवम्बर 5 -- मोतिगरपुर, संवाददाता। मित्रता भगवान श्रीकृष्ण सुदामा जैसी होनी चाहिए। बचपन में गुरुकुल आश्रम ऋषि संदीपन महाराज से शिक्षा ग्रहण के समय जगंल में लकड़ी काटने के दौरान मिले श्रापित के चने को स्वयं खाकर सुदामा निर्धन हो गए। लेकिन अपने मित्र श्रीकृष्ण को बचा लिया। युगांतर तक उनकी मित्रता से लोगों की प्रेरणा मिलती रहेगी। श्रीमद्भागवत कथा में कथा व्यास पं घनश्याम द्विवेदी ने भक्तों को भगवान कृष्ण सुदामा के कथा का मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत रसास्वादन करते हुए कहा कि मित्र वही है जो विपदा में भी मित्र का साथ निभाए। उन्होंने कहा पत्नी सुशीला के कहने पर सुदामा अपने बाल सखा द्वारिकाधीश से मिलने पहुंच गए। वादक यंत्र पर घनश्याम द्विवेदी ने भगवान कृष्ण ने मित्र सुदामा मिलन पर मार्मिक भजन, पानी परात को हाथ छुयो नहीं, नयन के जल से पग ध...
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