हापुड़, अगस्त 9 -- 447 साल पहली बात थी, रक्षा बंधन के दिन महल में रानी को खबर मिली की राजा अकबर ने चित्तौड़ के किले को ध्वस्त कर दिया है। रानी ने रसोईये से पूछा कि क्या बना है। जब तक काली दाल पूरी तरह बनी नहीं थी और रोटियों के लिए आटा गूथा था। रानी काली दाल और कच्चे आटे से रक्षा बंधन का पूजन कर युद्ध के लिए निकल गई थी। उस समय से महाराण प्रताप के वंशज वाले गांव उसी परम्परा को निभा रहे हैं। महाराणा प्रताप की 17 वीं पीढ़ी आज भी 447 साल से चली आ रही परंपरा को चलाती आ रही हैं। धौलाना के साठा चौरासी के 60 गांवों के सैकड़ों परिवार रक्षाबंधन के त्योहार पर दाल-रोटी बनाते हैं। 40 दिन से गांव-गांव घूम रही छड़ी रक्षा बंधन पर महाराणा प्रताप के वंशजों के घर पहुंचेगी। जहां से दीपक के लिए घी, आटा आदि सामग्री को पूजन के बाद ले जाकर छड़ी को मेला स्थल पर गा...