लखीमपुरखीरी, जून 30 -- मोहर्रम शुरू होते ही ही शिया समुदाय के घरों में मातम की सदाएं गूंजने लगी हैं। शहीदाने कर्बला को पुरसा देने का सिलसिला शुरू हो गया है। घरों में सज चुकी फ़र्शे अज़ा पर मातम की सदाएं गूंजने लगी है। नगर के इमामबाड़े और शिया समुदाय के घरों से या हुसैन या अली की सदाएं बुलंद होने लगी। अकीदतमंदों का मानना है कि मोहर्रम का आगाज़ होते ही ऐसा महसूस होता है कि सदियां गुजर जाने के बाद भी हुसैनियत के जख्म आज भी हरे हैं। इस्लाम धर्म के पैग़म्बर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत के सिलसिले में मनाया जाने वाला मोहर्रम का त्यौहार मुस्लिम समुदाय में गमी के रुप में मनाया जाता है। इस सिलसिले में मुस्लिम लगातार दस दिनों तक अलम और ताजियों का जुलूस निकालते हैं व मातम करते हैं। इस दौरान शिया अकीदतमंदों द्वारा मर्सिया ख्वानी, न...
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