संभल, जून 27 -- नगर में बुधवार को मुहर्रम का चाँद दिखाई देने के साथ ही शिया समुदाय में सवा दो महीने का शोक (अज़ादारी) शुरू हो गया। गुरुवार को पहला मोहर्रम मनाया गया। इस मौके पर महिलाओं और पुरुषों ने काले वस्त्र धारण कर गम का इज़हार किया और दस रोज़ा मजलिसों का सिलसिला आरंभ हो गया। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 71 साथियों की करबला में दी गई कुर्बानी की याद में यह महीना पूरी अकीदत और सादगी से मनाया जाता है। इस अवसर पर मौलाना सफी असगर नजमी ने कहा कि मुहर्रम कोई उत्सव नहीं, बल्कि ग़म और सब्र का महीना है। उन्होंने कहा कि यही वह महीना है जब हज़रत रसूल का पूरा घराना मुसीबतों में घिर गया था। मौलाना ने आगे कहा कि मुहर्रम में दिन-रात अज़ादारी और मजलिसें कीजिए, मगर पूरी सच्चाई और खुलूस के साथ। उन्होंने यह भी बताया कि इस्लामी कैलेंडर के अनुसार ...