अमरोहा, जून 28 -- शुक्रवार को मोहर्रम की पहली तारीख थी। इमामबाड़ों में सुबह से शुरू हुआ मजलिसों का सिलसिला देर रात तक जारी रहा। नौबत बजाकर अजादारी का ऐलान हुआ। फिजा में या हुसैन-या हुसैन की सदाओं की गूंज सुनाई देती रही। पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम अपने कुनबे के लोगों समेत 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में थे। जहां मुकाबले पर यजीद की बड़ी फौज खड़ी थी। दस मोहर्रम को इमाम हुसैन और साथियों को ईराक के शहर कर्बला में रेगिस्तान की तपती जमीन पर भूख और प्यास की शिद्दत के बीच शहीद कर दिया गया था। इन्हीं शहीदों की याद में ही पूरी दुनिया में मोहर्रम के महीने में अजादारी होती है। मोहर्रम का चांद दिखाई देते ही इमामबाड़ों को बेशकीमती झाड़-फानूस से सजाकर काले अलम लगा दिए जाते हैं। इसी सिलसिले में इमामबाड़ा बगला, छज्जी व नूरन में कीमत...