अमरोहा, मार्च 17 -- रविवार को 15 वां रोजा मुकम्मल हो गया। मुकद्दस महीना अब बहुत तेजी से अपने आखिरी दौर की तरफ बढ़ना शुरू हो गया है। रोजेदार पूरी शिद्दत से रोजे की अहम इबादत को अंजाम देने में लगे हुए हैं। रोजा इस्लाम मजहब का एक अहम सुतून है। यूपी उर्दू अदब सोसाइटी के अध्यक्ष कौसर अली अब्बासी का कहना है कि मजहबी नजरिए से रोजा गुनाहों से दूरी के जरिए रूह की सफाई है और सामाजिक एतबार से रोजा इंसान को खुद पर काबू रखना सिखाता है। रोजा सिर्फ भूखे रहने या खाना-पानी छोड़ने का ही नाम नहीं है बल्कि इंसान के जिस्म के हर हिस्से का रोजा होता है यानी हमारी आंख, मुंह, काम, हाथ सबका रोजा है। रोजे की हालत में न तो झूठ बोलना है और न ही कोई ऐसी बात करनी है जिससे किसी का दिल आजारी हो इसी तरह रोजे में हमे अपने कान से न ही किसी की बुराई सुननी है और ऐसे ही अपने ह...