वाराणसी, नवम्बर 30 -- वाराणसी, मुख्य संवाददाता। साहित्य का विकास वास्तव में मानव मन के विकास का प्रतीक है। रामायण, महाभारत और विभिन्न नाटकों जैसे काव्यों की धर्म की अवधारणा के प्रचार में अद्वितीय भूमिका है। ये बातें भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद दिल्ली के सदस्य सचिव प्रो.सच्चिदानंद मिश्र ने कहीं। वह रविवार को बीएचयू के कला संकाय के अंग्रेजी विभाग की ओर से स्वतंत्रता भवन में आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि थे। उन्होंने कहा कि मानव सभ्यता में साहित्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीराम और रावण जैसे चरित्रों और उनके कार्यों के माध्यम से ही व्यक्ति आदर्श गुणों को आत्मसात करता है। जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में अपने धर्म के अनुरूप कार्य करना सीखता है। उन्होंने आचार्य मम्मट के हवाले से कहा कि काव्य पाठक को किसी प्...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.