घाटशिला, अप्रैल 17 -- गालूडीह, संवाददाता। गालूडीह उल्दा स्थित माता वैष्णोदेवी धाम में वैष्णोदेवी मंदिर में तृतीय स्थापना दिवस पर कथा के चौथे दिन हृदयानंद गिरि महाराज ने देवव्रत की कथा बताई कि कैसे वह भीष्म पितामह बने। उन्होंने कथा में राम को कपि हनुमान का ऋणी बताया। हरिश्चंद्र के भाग्य में पुत्र ही नहीं थे। वह सत्य का दामन नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि विद्या के समान मित्र नहीं होता है, जब तक नेत्रों में ज्ञान नहीं विद्या नहीं, तब तक सब अंधे हैं। सत्य के बल पर दो लोग स्वर्ग पर हैं। एक हरिश्चंद्र और दुसरा धर्मराज युधिष्ठिर। राग के समान दुःख कोई नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है। इंसान मजदूरी करके भी भूख से मरता है, जबकि पशु पक्षी कभी भूख से नहीं मरते हैं। इसका कारण भगवान पर विश्वास कमजोर होना है। उन्होंने रागी और त्यागी की दोस्ती का वर्णन...