शामली, दिसम्बर 2 -- शहर के जैन धर्मशाला में आयोजित प्रवचन में आचार्य श्री 108 नयन सागर मुनिराज ने बताया कि अध्यात्म का वास्तविक अर्थ आत्मा से जुड़ना है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के सभी कार्य आत्मा से जुड़े हों, तभी जीवन में परिवर्तन संभव है। केवल शारीरिक सुख हेतु किए गए कर्म बाहरी जगत तक सीमित रहते हैं और उनसे अंतःकरण में कोई सुधार नहीं आता। आचार्य श्री ने कहा कि जगत दो प्रकार का होता हैं। आंतरिक और बाहरी। अधिकतर लोग बाहरी जगत में उलझे रहते हैं, इसी कारण आत्मिक उन्नति नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति आत्मार्थी होता है, वह लाभ या हानि से प्रभावित नहीं होता। यदि कोई क्रिया आत्मा से नहीं जुड़ी, तो वह असंतोष का कारण बनती है। सच्चा साधक लाभ मिलने पर भी संतुष्टि में नहीं रुकता, बल्कि वह कर्म के उदय को समझता है। उन्होंने कहा कि पूजा-पाठ और ध्...