हरिद्वार, फरवरी 3 -- भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने ध्रुव और प्रह्लाद का चरित्र वर्णन कर बताया कि भक्ति की कोई उम्र नहीं होती है। पांच वर्ष का बालक ध्रुव अपने पिता महाराज उत्तानपाद की गोद में बैठने जा रहा था। तभी उसकी सौतेली मां महारानी सुरुचि ने बालक ध्रुव को पिता की गोद में बैठने से रोका और कहा कि पिता की गोद में तभी बैठ सकते हो, जब तुम भगवान की तपस्या करो और भगवान से वरदान प्राप्त कर मेरे गर्भ से जन्म लो। भागवताचार्य शास्त्री श्रीराधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट की ओर से पीपलेश्वर शिव मंदिर कृष्णा नगर कनखल में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सौतेली मां के इन वचनों को सुनकर के बालक ध्रुव घर छोड़ कर वृंदावन की पावन भूमि पर पहुंचकर कठोर साधना करने लगा।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृत...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.