मिर्जापुर, नवम्बर 2 -- मिर्जापुर। पं. निर्मल कुमार शुक्ल ने कहा कि वेदों में परमात्मा को रस स्वरूप कहा गया है। रसो वै सः। जहां भक्त और भगवान एक ही धरातल पर उपस्थित हो जाएं। भक्त अपनी भक्तता और ब्रह्म अपना ब्रह्मत्व भूल जाएं। दोनों ही तदाकार वृत्ति को प्राप्त हो जायं वही रास है। नगर के दुर्गा देवी सोनवर्षा में आयोजित भागवत कथा के छठवें दिन प्रवचन कर रहे थे। उन्होने कहा कि रासलीला केवल शरद पूर्णिमा की तिथि को ही संभव है। चंद्रमा को रसराज कहा गया है। ‌पूर्णिमा की तिथि को संसार में रसवृद्धि होती है। यहां तक कि जड़ समुद्र में भी इस दिन ज्वार आता है। समुद्र समस्त जलाशयों का स्वामी है, इसलिए जगत के सारे जलाशयों में भी इस दिन रसवृद्धि होती है। हमारा शरीर भी एक जलाशय ही है। इसमें 75 प्रतिशत से अधिक जलतत्व भरा हुआ है अतः पूर्णिमा के दिन शरीर भी उद्...