सीतापुर, अप्रैल 8 -- एक फ़िल्म का गाना बहुत प्रसिद्ध था कि 'सारी दुनिया का बोझ मैं उठाता हूं। जिसमें एक कुली ऐसा कहता है। अब ऐसा ही कुछ हाल मासूमों का है, जिनके नाजुक कंधों पर भारी भरकम बस्ते का बोझ है। अपने वज़न से लगभग आधे वज़न का बैग वह उठा रहे हैं। पहले ही तेज़ी से भागती दुनिया में पढ़ाई को लेकर कम्पटीशन का दौर है, जिसमें बच्चों पर पढ़ाई का ज़बरदस्त दबाव है। ऐसे में ये कई किलोग्राम के बस्ते बच्चों को शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से बीमार बना रहे हैं। स्वभाविक है कि बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा है। जो उनके भविष्य के लिए चिंताजनक है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में हर माता-पिता का सपना होता है,कि उनका बच्चा मेहनत से पढ़ाई करे और अव्वल रहे। माता-पिता के ललक और स्कूल में प्रतिस्पर्धा के इन दौर ने बच्चों के कंधों पर उनकी क्षमता से ज्यादा बस्ते क...