सीतापुर, अक्टूबर 14 -- कभी अपनी हस्तकला, चमड़े के जूते, ताजियों और बर्तन उद्योग के लिए मशहूर सीतापुर जिले में कुटीर उद्योग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। जिले का हर एक कस्बा किसी न किसी उद्योग के लिए पहचाना जाता था लेकिन अब हालात काफी खराब हो गए हैं। जिला अब अपनी पुरानी पहचान खोता जा रहा है। लहरपुर के चमड़े के जूते जहां कई प्रदेशों तक भेजे जाते थे। वहीं बिसवां में बनने वाला ताजिया भी देश के कोने-कोने में जाता था। इसके अलावा कुतुबनगर और महमूदाबाद में बर्तनों के कारीगरों की तूती कई प्रदेशों में बोलती थी। यह सभी कुटीर उद्योग कभी इस जिले की अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा थे। मगर सरकारी संरक्षण के अभाव के कारण जहां कच्चे माल की कमी के कारण उद्योगों पर संकट छाने लगा वहीं महंगाई और आधुनिक बाजार की चुनौती ने इन उद्योगों को लगभग खत्म कर दिया है...
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