सहारनपुर, अप्रैल 14 -- समाज में मास्टर जी कहे जाने वाले दर्जी आज हाशिये पर हैं। दर्जियों के हुनर को मशीनों और फैक्ट्रियों में बने रेडीमेड कपड़े निगलता जा रहा है। कपड़े की खरीदारी से लेकर सिलाई तक का खर्चा, रेडीमेड के मुकाबले लगभग दोगुना हो जाता है। दूसरी तरफ दर्जी का अपना खर्च भी बढ़ गया है-धागा, बटन, जिप और सिलाई मशीनों की मरम्मत जैसी जरूरतें महंगी हो गई हैं। कई दर्जी तो ग्राहकों की कमी के कारण अपना पुश्तैनी धंधा बंद करने पर विचार कर रहे हैं। आज दर्जी हाशिये पर हैं। अब दर्जियों के हुनर को मशीनों और फैक्ट्रियों में बने रेडीमेड कपड़े निगलता जा रहा है। आज के दौर में जब हर चीज 'फास्ट और 'इंस्टेंट हो गई है, तब सिलाई की बारीकी और दर्जी के धैर्य को कम महत्व मिलने लगा है। कपड़े खरीदने की प्रक्रिया अब 'चुनो और पहन लो तक सीमित रह गई है। ऐसे में पु...