शाहजहांपुर, फरवरी 24 -- यह भट्ठों पर ईंट पाथते हैं। धूप हो या ठंड हमेशा खुले आसमान के तले काम करते हैं। बरसात में खाली हाथ रहते हैं। मेहनताना दिहाड़ी या ठेके के हिसाब से मिलता है। शोषण इनकी नियति बन चुका है। अशिक्षा की बेड़ियों ने इन्हें ऐसा जकड़ा है कि कोई और काम कर नहीं सकते। इनके लिए सरकार के पास तमाम योजनाएं हैं, लेकिन उनका लाभ इन श्रमिकों से कोसों दूर है। ईंट भट्ठों पर महिलाओं और पुरुषों को काम करते हुए तो देखा ही होगा। मिट्टी गूंथने के बाद सांचें में ढाल कर यह कच्ची ईंट तैयार करते हैं। इनकी जिंदगी भी कच्ची ईंट की ही तरह होती है। दूरस्थ स्थानों से यह सभी काम करने आते हैं। वहीं पन्नी तान कर रहते भी हैं। काम शुरू होने से खत्म करने तक यह घड़ी नहीं देखते हैं। सूर्य उदय होते ही काम शुरू, अस्त होने पर ही यह काम बंद करते हैं। इन श्रमिकों को क...
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