रायबरेली, अगस्त 14 -- रायबरेली। 1857 क्रांति से लेकर देश को आजादी दिलाने तक में जनपद के बीर सपूतों की यादों को संजोना मुश्किल हो रहा है। सात जनवरी 1921 को सई नदी का पानी लाल हो गया, लेकिन यहां के सपूतों ने हार नहीं मानी। ऐसे सपूतों की याद में शहीद स्मारक तो बना, लेकिन वह स्थान नहीं मिला जिसका वह हकदार है। सेहगों कांड के शहीदों की अस्थि कलश दशकों तक इसलिए रखे हैं कि उनके नाम से स्मारक नहीं बना। अब वहां स्मारक बनना शुरू हो गया है। इस तरह के जनपद में एक दर्जन से अधिक स्थान हैं, जहां सपूतों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये। कई जगहों पर तो सीना तान कर अंग्रेजों की खिलाफत की। कई जगहों पर उन्हें हटाने के लिए बैठकें की। शहीद स्मारकों के सुंदरीकरण की आस रायबरेली, संवाददाता। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालो...
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