रामपुर, फरवरी 15 -- हमने सफर के कितने ठिकाने देखे...बोझ में भी सपने सुहाने देखे...थके बदन के साथ घर लेकर गए खुशियां...अपने कंधों पर जिंदगी के जमाने देखे...इन लाइनों जैसी ही कुछ रामपुर के कुलियों की दास्तान है। लेकिन, वक्त के साथ यात्रियों की मदद करने वाले इस तबके के जीवन में कई समस्याएं होती हैं। वैसे तो इन्हें रेल से अलग नहीं किया जा सकता। लेकिन, हमेशा इनकी शिकायत रेल वाली सुविधा न मिलने को लेकर ही रहती है। ऐसा ही हिन्दुस्तान के साथ रामपुर के कुलियों ने अपनी परेशानी और समस्या को साझा किया। सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लोग आते हैं जाते हैं, हम यहीं पे खड़े रह जाते हैं। कुलियों का जिक्र होते ही वर्ष 1983 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म कुली का यह गाना बरबस ही याद आ जाता है। इस फिल्म ने पहली बार रेल यात्रियों का बोझ उठाने वाले इस तबके के सं...