मैनपुरी, अप्रैल 30 -- शहर का संता बसंता। सुबह होते ही मजदूरों की भीड़ से गुलजार हो जाता है। हाथों में टिफिन और साइकिल लेकर जमा होने वाले इन मजदूरों को यहां आते ही उम्मीद पैदा हो जाती है कि अगले कुछ मिनटों में कोई उन्हें काम देने आएगा। जैसे-जैसे सूरज के तेवर तीखे होते हैं वैसे-वैसे इनकी उम्मीद निराशा की ओर बढ़ने लगती है। सुबह 9 बजते ही यहां की भीड़ खामोश होने लगती है, किसी को काम मिल जाता है तो कोई काम न मिलने से निराश होकर घर लौट जाता है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद में लोगों को खुशी देने वाले इन मजदूरों ने कहा कि काम की कोई गारंटी नहीं है बस उम्मीद के सहारे जीना मजबूरी बन गई है। अगर सरकार कुछ मदद करे तो उनकी भी जिंदगी में खुशियां भी आए। काम की उम्मीद लेकर हर रोज संता बसंता चौराहे पर जमा होने वाले इन मजदूरों की एक जैसी कहानी है। इनके घरों में ह...