मैनपुरी, मार्च 9 -- वक्त बदलता चला गया, मगर समाज के इस वर्ग में अपेक्षित बदलाव नहीं हो सका। सरकार की दर्जनों योजनाओं का लाभ लेने में भी इस वर्ग ने कोई रुचि नहीं दिखाई और न ही हुक्मरानों ने इस वर्ग को उपेक्षा और पिछड़ेपन के दायरे से बाहर निकालने की कोई कोशिश की। यही वजह है की शहर, कस्बा और ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोहपीटा समाज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। हर कोई इन्हें उपेक्षा के भाव से देखता है। इस वर्ग ने सरकार और न प्रशासन से अपने हक की मांग की। हिन्दुस्तान के बोले मैनपुरी संवाद के दौरान इस वर्ग ने अपनी पीड़ा तो बताई लेकिन यह भी जोड़ा कि उनकी परंपराएं उनके इतिहास की गाथाएं उन्हें आगे नहीं बढ़ने देतीं। हालांकि उनके बच्चे भी स्कूल जाना चाहते हैं, नौकरी करना चाहते हैं। लोहपीटा समाज को मेहनतकश और ईमानदार समाज के रूप में पहचान मिली हुई है...