मेरठ, मई 5 -- यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले ड्राइवर और परिचालकों की खुद की मंजिल आसान नहीं होती। यात्रियों को सलामती के साथ उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाले ड्राइवर और कंडक्टर खुद समस्याओं से जूझते नजर आते हैं। संविदा कर्मियों की बात करें तो उनकी हाजिरी का कोई रजिस्टर नहीं है, अगर बस नहीं चली तो पैसा भी नहीं मिलता। वहीं आउटसोर्स वालों की कहानी तो और भी दयनीय है, उनको मिलने वाली सेलरी में वे अपना खर्चा भी नहीं चला पा रहे हैं। व्यवस्था में सुधार की आस लिए सड़कों पर दौड़ते ये लोग खुद के लिए बेहतर व्यवस्था चाहते हैं। हर सुबह जब हम बस में सवार होकर अपने गंतव्य की ओर निकलते हैं, शायद ही हम उन चेहरों को गौर से देख पाते हैं, जो हमारी यात्रा को सुरक्षित और समय पर पूरा कराने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए होते हैं। वे ड्राइवर और कंडक्टर, ज...