मिर्जापुर, मार्च 9 -- घर हो या बाहर-बुजुर्गों को आमतौर पर पर्याप्त सम्मान नहीं मिलता है। सरकारी कार्यालयों में उनकी कोई सुनवाई नहीं होती है। उन्हें बैठने के लिए कुर्सी भी नहीं दी जाती है। छड़ी के सहारे वे खड़े-खड़े अपनी बात कहते हैं और आंखों में दर्द लिए चले जाते हैं। रेलवे स्टेशनों और अस्पतालों में उनके लिए अलग काउंटर नहीं है। उन्हें धक्का खाने पड़े या वे गिर पड़े-हुक्मरानों को कोई परवाह नहीं। हां, आदर्श बतियाने की बात आने पर सभी आला अफसरों के सुर बदल जाते हैं। बुजुर्गियत अपने आप में बड़ा सवाल है। भोजन-दवाई से लेकर सामाजिक औचित्य बनाये रखने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। महंथ शिवाला स्थित वरिष्ठ नागरिक संरक्षण संस्थान के महामंत्री सिद्धनाथ सिंह के आवास पर 'हिन्दुस्तान के साथ चर्चा के दौरान बुजुर्गों ने अपनी समस्याएं साझा कीं। अध्यक्ष ...