मिर्जापुर, जुलाई 13 -- ईंट भट्ठा उद्योग जिले की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूत कड़ी है। ईंटें जब पकती हैं, तब इमारतों के 'ख्वाब खड़े होते हैं। जिन हाथों से ये ईंटें आकार पाती हैं, आज वही हाथ 'बेबस और बोझिल हो चले हैं। भट्ठा मालिक खुद समस्याओं से परेशान हैं। ऐसे में सरकारी नियम जेब पर भारी साबित हो रहे है। कोयले की आग जल रही है, मगर मुनाफा ठंडा हो गया है। लागत बढ़ी, कागजी पेच बढ़े, लेकिन रेट वहीं के वहीं। भट्ठा मालिक कहते हैं कि हम सरकार की झोली भरते हैं, फिर भी परेशान हैं। ईंट भट्ठा संचालक निर्माण व्यवस्था की रीढ़ हैं। उनके भट्ठों से निकलने वाली ईंटें स्कूल, मकान, अस्पताल और दफ्तरों की नींव बनती हैं, लेकिन खुद उनका कारोबार अस्थिर होता जा रहा है। कोयले की महंगाई, मजदूरों की कमी और मिट्टी के परमिट जैसे मुद्दों ने उन्हें चौतरफा घेर लिया है। ज...