मिर्जापुर, जुलाई 22 -- शतरंज से मोहब्बत है जनाब, लेकिन जिले में कोई पूछता नहीं। खिलाड़ी अपनी बिसात पर मेहनत कर रहे हैं। न प्रशिक्षक हैं, न प्रशिक्षण केंद्र और न ही टूर्नामेंट की कोई स्थायी व्यवस्था। वे कहते हैं- बिना मंच के कोई कैसे आगे बढ़े? जब महानगरों में प्रतियोगिताएं होती हैं। तब हम अपने खर्चे पर जाते हैं। फिर भी न स्कॉलरशिप मिलती है, न यात्रा भत्ता। अगर थोड़ा सहयोग, मार्गदर्शन और मंच मिल जाए तो मिर्जापुर से भी 'चेस मास्टर निकल सकते हैं। बस एक चाल आपकी तरफ से चाहिए। फिर देखिए हम कैसे बाजी पलटते हैं। जिले में शतरंज का खेल प्रतिभाओं से भरा पड़ा है, लेकिन अफसोस- सुविधाओं और प्रोत्साहन के अभाव में ये खिलाड़ी गुमनामी की बिसात पर बिछे पड़े हैं। जिले में लगभग 200 शतरंज खिलाड़ी सक्रिय हैं, जो व्यक्तिगत प्रयासों और सीमित संसाधनों के बीच अपने ...
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