बिजनौर, मई 5 -- ये लोग न तो हुनर में किसी से कम हैं और न उनकी कार्यक्षमता सामान्य लोगों से कमतर है, मगर उनके प्रति समाज का नजरिया अलग है। उपेक्षा और समाज से अलग-थलग कर देने का दर्द उन्हें अंदर तक बेधता है। कागजों में सम्मानजनक शब्द 'विशिष्ट मिल गया, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के लिए लड़ना विधाता से मिले दर्द से भी अधिक तकलीफदेह लगता है। कार्यालयों में दिव्यांगों के बैठने की व्यवस्था तो दूर डांट-फटकार तक सहनी पड़ती है। इसके पीछे वे जिम्मेदार अफसरों की बेरुखी को बड़ी वजह मानते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं दिव्यांगों के दर्द की। जिनको कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जिनमें सामाजिक भेदभाव, शिक्षा और रोजगार के सीमित अवसर, दुर्गम बुनियादी ढांचा और जागरूकता की कमी शामिल है। इसके अलावा दिव्यांगों को शिक्षा और रोजगार के सीमित अवसर मिलते हैं। ...