बाराबंकी, अक्टूबर 3 -- दशहरे के त्योहार पर शहर और गांवों में रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले सज जाते हैं। आतिशबाजी के बीच इन पुतलों का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है। लेकिन इन पुतलों को बनाने वाले कारीगरों की जिंदगी आज भी उपेक्षा और संघर्ष से भरी हुई है। कारीगर बताते हैं कि वे सालभर इस काम से जुड़े नहीं रहते। पुतला बनाने का काम उन्हें केवल कुछ दिन का रोजगार देता है। त्योहार बीतते ही उनकी रोज़ी-रोटी का सहारा टूट जाता है और बाकी महीनों वे मजदूरी, खेती-किसानी या छोटे-मोटे काम करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। उनकी सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि सरकार और प्रशासन की ओर से उन्हें किसी तरह की सुविधा या सहयोग नहीं दिया जाता। पुतला बनाने के लिए न तो कच्चा माल सस्ती दरों पर मिलता है और न ही कोई प्रशिक्षण या आर्थिक मदद। कई बार त...