बाराबंकी, जून 19 -- बाराबंकी। सड़क हादसे, कुत्ते के काटने, सर्पदंश, फ्रैक्चर जैसी आपात स्थितियों में केवल प्राथमिक मरहम-पट्टी करके मरीज को जिला अस्पताल या लखनऊ रेफर कर देते हैं। ना तो आवश्यक जीवनरक्षक दवाएं उपलब्ध हैं और न ही इमरजेंसी ट्रॉली, स्ट्रेचर या ऑक्सीजन की समुचित व्यवस्था। सर्पदंश की दवा कई जगह उपलब्ध ही नहीं है, जिससे जान पर बन आती है। रात के समय जरूरत पड़ने पर इन केंद्रों से कोई उम्मीद करना बेइमानी है। अधिकांश केंद्रों पर नाइट ड्यूटी स्टाफ की तैनाती ही नहीं होती। मरीज दरवाजे खटखटाते रहते हैं लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता। यह स्थिति खासकर गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों के लिए बेहद खतरनाक हो सकती है। पंजीकृत दवाओं की सूची भले ही लंबी हो, लेकिन जमीनी सच्चाई इसके उलट है। कई बार जरूरी दवाएं जैसे पैरासीटामॉल, एंटीबायोटिक्स, खांसी-सर्दी की...