बहराइच, अक्टूबर 8 -- मिट्टी को गढ़कर मूर्तियों का आकार देने, बर्तन तैयार करने और रोशनी के लिए दीये बनाने में कुम्हारों के हुनर का कोई सानी नहीं है। मिट्टी को गढ़ना ही इनका पेशा है। इसी कमाई से इनकी गृहस्थी चलती आ रही है। लेकिन कुम्हार समुदाय मिट्टी, पानी और ईंधन की कमी से जूझ रहा है। अच्छी मिट्टी की अनुपलब्धता और महंगे ईंधन की वजह से बर्तनों की लागत बढ़ गई है। इससे युवा इस पेशे से विमुख हो रहे हैं। यह समाज अभी भी सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी समस्याओं से जूझ रहा है। बोले बहराइच अभियान के तहत हिन्दुस्तान ने कुम्हारों से बातचीत की तो उन्होंने अपनी समस्या बेबाकी से रखी और कहा कि सरकार की ओर से योजनाएं तो चलाई जा रही हैं, लेकिन सभी तक इन योजनाओं का लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। सभी ने कहा कि अगर उन्हें सरकारी मदद मिले तो कुम्हार की कला को बढ़ावा...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.