बलिया, अप्रैल 6 -- लगन शुरू होने के कुछ दिन पहले से ही गद्दा-रजाई बनाने वालों के यहां रूई धुनाई करते 'धिन-धिन की आवाज बढ़ जाती थी। कारीगरों को बढ़ाकर आर्डर पूरे किए जाते थे। अब तस्वीर बदल गयी है। माडर्न होते शहर और हाईटेक होती जिंदगी में रुई-गद्दा का कारोबार मंदा हो चला है। कम्बल व रेडीमेड रजाइयों के चलते ठंड के मौसम में भी अच्छी बिक्री नहीं हो रही। मेहनत के मुताबिक कमाई नहीं होने के कारण परम्परागत कारोबार से नयी पीढ़ी का मोहभंग हो रहा है। बाजार में आग से बचाव का इंतजाम नहीं है। शौचालय-यूरिनल की कमी अखरती है। नगर के गुदरी बाजार में 'हिन्दुस्तान से बातचीत में रुई-गद्दा कारोबारियों ने अपनी समस्याओं का जिक्र किया। कारोबार को लेकर चिंता भी जताई। सुभाष चंद्र ने बताया कि ढाई दशक पहले तक बाजारों में केवल कपास की रुई ही होती थी। उनमें भी दो-तीन क...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.