बलिया, मार्च 25 -- हर हाथ को काम का दावा दिहाड़ी मजदूरों के लिए 'लालीपॉप जैसा है। प्रमुख चौराहों पर रोजाना घंटों खड़े रहने वाले इन श्रमिकों की नजरें हर उस शख्स पर टिक जाती हैं, जो उनके पास तक आते हैं। इस उम्मीद में कि शायद कोई काम मिल जाए और रोटी का इंतजाम हो जाए। श्रम विभाग में पंजीकरण की राह भी आसान नहीं होती। मजदूरी कम होने के चलते मनरेगा भी लुभा नहीं पा रही। पैसा मिलता भी है तो शोषण का शिकार होना पड़ता है। राशन में कटौती और आयुष्मान से वंचित होने का दर्द भी कम नहीं है। नगर के रामपुर चौराहा पर 'हिन्दुस्तान से श्रमिकों ने बातचीत शुरू की तो दर्द की गठरी बड़ी होती चली गयी। सतीश कुमार ने बताया कि करीब 10 वर्ष पहले तक ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा काफी लाभकारी थी। मजदूरी भी सामान्य से अधिक होती थी और भुगतान भी समय से हो जाता था। काम देने में...