बलिया, मार्च 9 -- स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ मानी जाने वाली आशाएं संसाधनों-सुविधाओं की कमी से निराश हैं। उनके ऊपर गर्भवती महिलाओं और शिशुओं की सेहत की देखभाल की जिम्मेदारी होती है। उन्हें कई और काम करने पड़ते हैं। हालत यह है कि अस्पतालों में उन्हें बैठने या आराम करने की जगह नहीं होती है। सालभर में एक बार ड्रेस मिलती है। बैठकों में आने-जाने का अतिरिक्त भुगतान नहीं होता है। मानदेय मिलता नहीं। प्रोत्साहन राशि मनरेगा मजदूरों से भी कम होती है। ब्लॉक सभागार में 'हिन्दुस्तान से बातचीत के दौरान आशा बहुओं ने कई समस्याएं साझा कीं। आशा वर्कर्स यूनियन, बेरूआरबारी ब्लॉक की अध्यक्ष गीता सिंह ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग किसी योजना या अभियान से जोड़ते समय उन्हें अपना अंग मानता है। मतलब निकलने के बाद पहचानता नहीं है। उन्हें 'वालेंटियर कहकर पल्ला झाड़ लेता है...