बलिया, मार्च 7 -- बलिया। 'सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं... लाल जैकेट में कुलियों को देखने के बाद सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म 'कुली का यह गीत अनायास ही तैरने लगता है। सबका बोझ ढोने वाले कुली दुश्वारियों के बोझ तले दबे हैं। कहने को ये केंद्रीय रूप से प्रशिक्षित और लाइसेंसधारक होते हैं, पहचान के लिए इन्हें बैच नंबर आवंटित रहता है, लेकिन न वेतन मिलता है और न मानदेय। रहने-खाने की सुविधाएं भी नसीब नहीं। थक-हार कर आराम करना चाहें तो उसके लिए भी कोई जगह निर्धारित नहीं है। अब तो न वर्दी मिल रही और न ही पारिवारिक-आर्थिक सुरक्षा। बलिया रेलवे स्टेशन परिसर में 'हिन्दुस्तान से चर्चा में कुलियों ने महसूस कराया कि वे अपनी पीड़ा का बोझ लिए घूम रहे हैं। कुली संघ के अध्यक्ष नथुनी यादव ने बताया कि हम एक से दूसरे प्लेटफॉर्म पर भारी सामान ले जाने में यात्...